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इन्द्रियां
इन्द्रियां झूठी हैं--वे हमारे पास चीजों का सत्य नहीं बल्कि उनका एक अपूर्ण, यहां तक कि मिथ्या रंग-रूप लाती हैं ।
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यह समझना बहुत अधिक अज्ञानमय है कि हमारी आंखें और हमारे कान धोखा नहीं देते । हर मनोवैज्ञानिक जानता है कि वे धोखा देते हैं । यह तथ्य सभी जानते हैं कि हम आंख-कान पर आधारित मानव साक्षी का भरोसा नहीं कर सकते, कि उन पर आधारित अनुमान हमें गम्भीर भ्रान्तियों की ओर ले जा सकते हैं । एक ही घटना के बारे में दस आदमी कहें तो दस अलग- अलग वृत्तान्त होंगे ।
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ठीक-ठीक बोध : ऐसा बोध जो 'सत्य' को विकृत नहीं करता ।
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'सत्य' के प्रति सम्पूर्ण समर्पण से ही पवित्रीकृत इन्द्रियां प्राप्त हो सकती हैं ।
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